विज्ञान के इतिहास में 2 सितंबर यानि एटीएम मशीन के आने का दिन

2 सितम्बर 2013
 
 

आजकल टीवी पर अभिनेता सैफ अली खान का एक विज्ञापन आता है, जिसमें एक पिज्जा बॉय को पैसे देने के लिए उनके कहने भर से घर में ही लगी एक मशीन से पैसे उड़-उड़ कर निकलने लगते हैं। फिर एक टैग लाइन आती है-‘बड़े आराम से। इस विज्ञापन को कुछ मज़ाकिया अंदाज़ मे पेश किया गया है। पर आज की पीढ़ी जब बड़े आराम से एटीएम से पैसे निकालती है, तो शायद ही उन्हें कुछ वर्षों पहले तक बैंकों में पैसे निकालने के लिए लगने वाली लंबी कतार और उससे होने वाली तकलीफ के बारे में पता हो। हमारी पीढ़ी और हमसे पहले की पीढ़ी ने ये सब जिया है। घंटों पर्ची जमा करके कतार में खड़े होते थे, अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए। कब हमारी बारी आएगी और कब हमें पैसा मिलेगा। इतनी मारामारी होती थी कि लोग कतार तोड़कर आगे घुसने को बेकाबू होते थे। झगड़ा हो जाया करता था अक्सर। इस किचकिच से बचने के लिए उस वक़्त लोग पूरे महीने के खर्च का हिसाब करके एक ही बार में पैसा निकाल लेते थे ताकि उस महीने दूसरी बार चक्कर ना लगाना पड़े बैंक का। एक बार बैंक गए नहीं कि पूरा दिन निकल जाया करता था।


पर एक छोटे से आविष्कार एटीएम ने कई समस्याओं का एक बार में ही समाधान कर दिया। एटीएम यानि ‘औटोमेटेड टेलर मशीन

 

क्या आप जानते हैं कि एटीएम का आविष्कार किसने किया ? कई वर्षों से जापान, स्वीडन, ब्रिटेन एवं अमेरिका के वैज्ञानिक और इंजीनियर बैंकिंग क्षेत्र में स्वयं सेवा प्रदान करने वाली मशीन बनाने के प्रयोग पर लगे थे और एटीएम से मिलती-जुलती कई मशीनें 1950-1960 के बीच बनी। पर पहली एटीएम मशीन जो पैसे देती थी उसे आज यानि 2 सितंबर1969 को अमेरिका के केमिकल बैंक ने न्यूयॉर्क में लोगों के सामने पेश किया। उस वक़्त नारा दिया ‘ पर्सनल बैंकिंग अब और ज्यादा पर्सनल

इस मशीन को बनाया था अमेरिकी इंजीनियर डोनाल्ड वेटजेल ने। इस मशीन ने एकबारगी ही बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में क्रांति ला दी। इस मशीन के आने से यह स्पष्ट हो गया था कि बैंकों में लगने वाली कतार अब बीते दिनों की बात होने वाली है। 1980 तक अमेरिका में लगभग सभी जगहों पर एटीएम लग चुके थे। तब तक इनमें पैसे निकालने के साथ-साथ जमा करने की सुविधा भी शुरू हो गयी थी। भारत में पहला एटीएम 1987 में एचएसबीसी (HSBC ) बैंक द्वारा मुंबईमें स्थापित किया गया।

 

धीरे-धीरे नेत्रहीन लोगों को ध्यान में रखकर ‘ संवाद करने वाला एटीएम मशीन विकसित की गयी। विश्व में सबसे पहले ‘रॉयल बैंक ऑफ कनाडा’ ने 22 अक्तूबर 1997 में ओट्टावा में संवाद करने वाला एटीएम मशीन स्थापित किया, वहीं भारत में सर्वप्रथम ‘ यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने 6 जून 2012 को वस्त्रपुर, अहमदाबाद में संवाद करने वाला एटीएम स्थापित किया। अभी तक भारत में सिर्फ बैंकों को ही एटीएम लगाने की इज़ाजत थी, पर पिछले साल (2012 में) आरबीआई ने व्हाइट लेबेल एटीएम स्थापित करने की अनुमति दी। ये वो एटीएम हैं जिसे वैसी कंपनियां स्थापित करेंगी जो बैंक नहीं हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में एटीएम की सुविधा प्रदान की जा सकेगी। टाटा कम्युनिकेशन द्वारा महाराष्ट्र के ठाणे जिले के चंद्रपदा में भारत का पहला व्हाइट लेबेल एटीएम जिसे कंपनी ने इंडीकैश’ नाम दिया गया है, 27 जून 2013 को स्थापित किया है।
 

एक रिपोर्ट के मुताबिक आज भारत में एक लाख से ज्यादा एटीएम मशीन काम कर रही है। 2016 तक यह संख्या दो लाख पहुँचने की संभावना है। निश्चय ही इस छोटे से आविष्कार ने बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र का नक्शा ही बदल दिया है। आम आदमी के लिए अब पैसे निकालने के लिए ना ही समय की पाबंदी है, ना ही ढेर सारा कैश एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का डर। जहां जाएँ वहीं जरूरत के मुताबिक पैसे निकाल लें। बैंकों में लगने वाली लंबी कतार और उससे होने वाली परेशानियाँ तो इतिहास की बात हो गयी। तो इस बार जब आप बड़े आराम से एटीएम से पैसे निकालें तो एक बार डोनाल्ड वेटजेल को धन्यवाद कहना न भूलें।


- सत्यजित नारायण सिंह
 

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